
आज के दौर में हम मशीनों, ऐप्स और ‘प्रभावशाली लोगों’ (Influencers) पर इतना विश्वास करने लगे हैं कि अपने भीतर की आवाज़ और ईश्वर दोनों को ही अनसुना कर दिया है।
हम सोचते हैं:
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अगर मेरी नौकरी जा रही है, तो कोई बाबा उपाय देगा।
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अगर रिश्ते टूट रहे हैं, तो कोई गुरुजी समाधान बताएंगे।
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और अगर जीवन दिशाहीन है, तो कोई Insta-गुरु “5 पॉइंट मंत्र” देगा।
हमने ईश्वर से संवाद बंद किया है, और उसके स्थान पर छांगुर बाबा जैसे ढोंगियों को “मैनेजमेंट गॉड” बना दिया है।
मैनेजर, मोटिवेशनल स्पीकर और बाबा: नए जमाने के ईश्वर?
इन दिनों किसी बाबा का ग्लैमरस वीडियो वायरल हो जाए, तो वो लाखों दिलों का “गॉडमैन” बन जाता है। उसके प्रवचन स्क्रिप्टेड होते हैं, वेशभूषा डिजाइनर होती है और संदेश… वही पुराना डर और लालच!
हम ऐसे “मैनेजरों” की बातों में इसलिए आते हैं क्योंकि:
हमें तात्कालिक समाधान चाहिए, आत्मचिंतन नहीं।
हमें तसल्ली चाहिए, सच्चाई नहीं।
हमें कोई तीसरा चाहिए जो हमें बताये कि “सब ठीक हो जाएगा”।
बस यहीं से जन्म होता है छांगुर बाबा जैसे लोगों का।
ईश्वर को अनफॉलो, बाबा को सब्सक्राइब
आज का इंसान ज़िंदगी के सवालों का उत्तर धर्मग्रंथों में नहीं, बल्कि YouTube के comment सेक्शन में खोजता है। ईश्वर से जुड़ने के लिए ध्यान, साधना, आत्ममंथन चाहिए। जबकि बाबा से जुड़ने के लिए बस एक ‘Follow’ और ‘Subscribe’ का बटन।
ऐसे में जो व्यक्ति आत्मा का सौदा करता है, उसे बाबा बहुत भाते हैं।
छांगुर बाबा: डर, मोह और धन का खेल
जैसे-जैसे हमारी आत्मिक कमजोरी बढ़ती है, वैसे-वैसे बाबा का कारोबार भी फलता है।
छांगुर बाबा जैसे लोग जानते हैं कि:
लोग डरते हैं — तो डर से पैसा निकालो
लोग टूटे हुए हैं — तो मोह दिखाओ
लोग अधूरे हैं — तो पूरा करने का वादा करो (झूठा ही सही)
और जब इन सब में धर्म और चमत्कार की चाशनी घोल दी जाती है, तो भीड़ खुद खिंची चली आती है।
क्यों हर पीढ़ी में एक ‘छांगुर बाबा’ जन्म लेता रहेगा?
क्योंकि हम खुद नहीं बदलते।
जब तक:
हम खुद को नहीं समझेंगे।
अपने विचारों को चुनौती नहीं देंगे।
आत्मविश्वास और ईश्वर से नाता नहीं जोड़ेंगे।
तब तक कोई न कोई बाबा हमारी ‘आत्मिक भूख’ को भुनाने के लिए खड़ा हो जाएगा — नए नाम से, नए भेष में, लेकिन उसी लालच के साथ।
समस्या केवल छांगुर बाबा नहीं है – हम खुद हैं
हमारी आस्था इतनी कमज़ोर है कि हम उसे बचाने के लिए भी किसी तीसरे की ज़रूरत समझते हैं।
हम ईश्वर को तब याद करते हैं जब मोबाइल की बैटरी खत्म हो जाती है — और बाबा को तब फॉलो करते हैं जब दिल का नेटवर्क कमजोर हो जाता है।
समाधान क्या है?
स्वयं पर भरोसा करें – आत्मबल सबसे बड़ा बल है
ईश्वर से संवाद फिर से शुरू करें – ध्यान, प्रार्थना और मौन के जरिए
तर्क से काम लें, चमत्कार से नहीं – हर प्रवचन से पहले सोचें: “क्या ये मेरी चेतना को जगा रहा है या सिर्फ लुभा रहा है?”
जब ईश्वर से ज़्यादा किसी बाबा या मैनेजर पर भरोसा होता है, तब छांगुर बाबा जैसे ढोंगी फलते हैं। ईश्वर Silent Mode में नहीं हैं, हम ही Airplane Mode में जी रहे हैं।